Nirvana Pithadhishwara
स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज: एक आध्यात्मिक जीवन यात्रा
स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज हिंदू धर्म के उन संतों में से एक थे, जिन्होंने अपने जीवन को आध्यात्मिक साधना, ज्ञान प्रसार, और समाज सेवा के लिए समर्पित कर दिया। उनका जीवन एक प्रेरणा स्रोत है, जो हमें आत्मिक शांति, भक्ति, और मानव कल्याण की ओर ले जाता है। उनके जन्म से लेकर मृत्यु तक की यात्रा एक साधारण मनुष्य से दिव्य आत्मा बनने की प्रक्रिया को दर्शाती है।
प्रारंभिक जीवन और आध्यात्मिक जागरण
स्वामी विश्वदेवानंद जी का जन्म संभवतः 20वीं शताब्दी के मध्य एक धार्मिक और साधनाशील परिवार में हुआ था, जहां से उन्हें बचपन से ही वेद, पुराण, और भक्ति साहित्य की शिक्षा मिली। उनका प्रारंभिक नाम और जन्म स्थान के बारे में स्पष्ट जानकारी नहीं मिलती, लेकिन यह माना जाता है कि उनका पालन-पोषण एक ऐसे वातावरण में हुआ जहां आध्यात्मिकता और नैतिकता पर विशेष जोर था। बचपन से ही उनकी जिज्ञासु प्रकृति और परमात्मा की खोज ने उन्हें धार्मिक ग्रंथों की ओर आकर्षित किया।
युवावस्था में, वे विभिन्न संतों और गुरुओं के संपर्क में आए, जिन्होंने उनकी आध्यात्मिक प्यास को और गहरा किया। यह समय उनके लिए आत्मचिंतन और साधना का आधार बना। वे प्रायः ध्यान और योग के अभ्यास में लीन रहते थे, जो उनके बाद के जीवन की नींव रखी। परिवार की अपेक्षाओं के बावजूद, उन्होंने सांसारिक सुखों को त्यागकर संन्यास का मार्ग चुना, जो उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण मोड़ था।
संन्यास और साधना का मार्ग
स्वामी विश्वदेवानंद जी ने युवावस्था में ही गेरुआ वस्त्र धारण कर लिया और औपचारिक रूप से संन्यास ग्रहण किया। उन्होंने एक गुरु की शरण ली, जिन्होंने उन्हें वेदांत, योग, और भक्ति मार्ग की गहरी समझ दी। कठोर तपस्या और लंबे समय तक हिमालय या अन्य पवित्र स्थानों पर साधना के माध्यम से उन्होंने अपने भीतर की शक्तियों को जागृत किया। उनका नाम “विश्वदेवानंद”—जिसका अर्थ है “विश्व के देवताओं का आनंद”—उनके व्यापक दृष्टिकोण और सभी प्राणियों के कल्याण की कामना को दर्शाता है।
इस अवधि में उन्होंने अनेक ग्रंथों का अध्ययन किया और अपने अनुभवों को आत्मसात किया। उनकी साधना में ध्यान, जप, और सेवा शामिल थी, जो उन्हें जनसाधारण के बीच एक सम्मानित संत के रूप में स्थापित करने में सहायक बनी। वे अपने गुरु के मार्गदर्शन में विभिन्न आश्रमों और तीर्थ स्थलों की यात्रा करते थे, जहां वे लोगों को सही जीवन पथ पर चलने की प्रेरणा देते थे।
आध्यात्मिक शिक्षण और समाज सेवा
स्वामी जी ने अपने जीवन का एक बड़ा हिस्सा लोगों को आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करने में बिताया। उनके प्रवचन सरल और हृदयस्पर्शी थे, जिसमें वे वेदांत के सिद्धांतों, भक्ति योग, और कर्म योग को समझाते थे। वे मानते थे कि सच्ची मुक्ति मन की शुद्धि और समाज सेवा से प्राप्त होती है। उनके आश्रम या साधना स्थल लोगों के लिए एक आध्यात्मिक केंद्र बन गए, जहां भक्त एकत्रित होकर ध्यान, कीर्तन, और सामुदायिक सेवा में भाग लेते थे।
वे गरीबों, बीमारों, और जरूरतमंदों की सहायता के लिए अक्सर आगे बढ़ते थे। उनके अनुयायियों के अनुसार, उन्होंने कई स्थानों पर मुफ्त चिकित्सा शिविर और शिक्षा कार्यक्रम आयोजित किए, जो उनके सेवा भाव को दर्शाता है। स्वामी जी का संदेश था कि ईश्वर सभी में निवास करता है, और मानवता की सेवा ही सच्ची भक्ति है।
अंतिम दिन और महासमाधि
स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज का जीवन साधना और सेवा में व्यतीत हुआ। उनकी मृत्यु का समय और स्थान स्पष्ट नहीं है, लेकिन हिंदू संतों की परंपरा के अनुसार, उन्होंने अपने जीवन के अंतिम दिनों में भी ध्यान और प्रार्थना जारी रखी। संभवतः 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध या 21वीं शताब्दी के प्रारंभ में, उन्होंने महासमाधि ली, जो एक संत का शरीर त्याग कर आत्मा को परमात्मा में विलीन करने का प्रतीक है। उनके शिष्यों का मानना है कि उनकी मृत्यु शारीरिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक जागरण का परिणाम थी, क्योंकि उन्होंने अपने जीवन का उद्देश्य पूरा कर लिया था।
उनकी मृत्यु के बाद, उनके अनुयायियों ने उनके संदेशों को आगे बढ़ाया और उनके नाम पर कई धार्मिक गतिविधियाँ जारी रखीं। आज भी उनके जीवन से प्रेरित होकर लोग आध्यात्मिकता और मानवता की राह पर चल रहे हैं।
निष्कर्ष
स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज का जीवन हमें सिखाता है कि सच्चा सुख और शांति आत्मज्ञान और सेवा में निहित है। उनके जन्म से मृत्यु तक का सफर एक साधारण मनुष्य से दिव्य संत बनने की प्रेरक कहानी है। उनके दिखाए मार्ग पर चलकर हम अपने जीवन को अर्थपूर्ण बना सकते हैं।
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कालिकाराधको नित्यं ज्ञानदीक्षाप्रदायकः।
गुरुदेव!नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥१
नित्य प्रति काली मां की आराधना करने वाले, ज्ञान व दीक्षा प्रदान करने वाले, निर्वाण पीठ के नायक, गुरुदेव! आपको प्रणाम है।
रहःपूजनसन्तुष्टो महादेवीप्रपूजकः ।
गुरुदेव! नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥२
एकान्त में पूजन करके संतुष्ट होने वाले, महादेवी की प्रकृष्ट पूजा करने वाले, निर्वाण पीठ के नायक गुरुदेव को प्रणाम है।
गीतारहस्यवक्ता यो महानिर्वाणदायकः।
गुरुदेव! नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥३
गीता का रहस्य बताने वाले, महानिर्वाण देने वाले, निर्वाण पीठ के नायक गुरुदेव को प्रणाम है।
वेदाद्वैतमताचार्यस्सर्वलोकैकदेशिकः।
गुरुदेव नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥४
वेद एवं अद्वैत मत के आचार्य, सारे संसार के प्रमुख देशिक (राह दिखाने वाले),निर्वाण पीठ के नायक, गुरुदेव को प्रणाम है।
ऊर्ध्वरेता महाज्ञानी शिष्यानुग्रहकारकः ।
गुरुदेव! नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥५
ऊर्ध्वरेता (जिन्होंने रेतस् तत्व का ऊर्ध्वगमन किया है), महाज्ञानी, शिष्यों पर अनुग्रह (कृपा) करने वाले, निर्वाण पीठ के नायक गुरुदेव को प्रणाम है।
जगद्वन्द्यो मुनिश्रेष्ठस्तत्त्वज्ञानप्रदायकः।
गुरुदेव! नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥ ६
जगत् में वन्दनीय, श्रेष्ठ मुनि, तत्वज्ञान प्रदान करने वाले, निर्वाण पीठ के नायक गुरुदेव को प्रणाम है।
करुणामुदितासिन्धुर्भक्तितत्त्वप्रबोधकः।
गुरुदेव! नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥७
करुणा और मुदिता (प्रसन्नता) के सागर, भक्ति तत्व के प्रबोध वाले, निर्वाण पीठ के नायक गुरुदेव को प्रणाम है।
आचार्योऽधिगतस्तत्त्वं मुक्तिज्ञानप्रदायकः।
विश्वदेव! नमस्तुभ्यं निर्वाणपीठनायक ॥८
तत्त्व को जानकर जो आचार्य, मुक्ति ज्ञान का प्रसार करते हैं, ऐसे विश्वदेव स्वरूप, निर्वाण पीठ के नायक गुरुदेव को प्रणाम है।
॥ अनन्तविरचिता गुरुमहिमा ॥
।। यह अनन्तबोध चैतन्य द्वारा विरचित गुरुमहिमा है।।
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योगारूढं परं शान्तं सौम्यरूपं गुणाकरम् ।
प्रणमाम्यतुलानन्दं चैतन्याहितचेतसम् ॥ 1
योगपथ पर आरूढ़, परम् शान्त, सौम्य स्वरूप वाले, गुणों के निधान, अपने चित्त को उस चैतन्य स्वरूप परमात्मा में रखने वाले, श्री अतुलानन्द जी महाराज को मैं प्रणाम करता हूं।
सर्वशास्त्रार्थनिष्णातं विप्रकुलसमुद्भवम् ।
प्रणमाम्यतुलानन्दं तपोरूपं परं गुरुम् ॥2
सभी शास्त्रों के अर्थ करने में निष्णात , ब्राह्मण कुल में जन्म लेने वाले , तपस्वी स्वरूप, सच्चे अर्थों में गुरु, स्वामी अतुलानन्द जी महाराज को मैं प्रणाम करता हूं।
गीतागोविन्दगङ्गानां गवां सम्पूजने रतम्।
प्रणमाम्यतुलानन्दं लोकवन्द्यं महागुरुम् ॥3
गीता, भगवान् कृष्ण, गंगा और गायों की पूजा करने में लगे रहने वाले , इस संसार के सभी मनुष्यों द्वारा वन्दनीय, महान् गुरु स्वरूप, स्वामी अतुल आनंद जी महाराज को मैं प्रणाम करता हूं।
अज्ञानध्वान्तविध्वंसप्रचण्डमतिभास्करम् ।
प्रणमाम्यतुलानन्दं ज्ञानरूपं परं गुरुम् ॥ 4
अज्ञान रूपी अंधेरे का नाश करने में जो प्रचंड बुद्धि को धारण करने वाले सूर्य के समान हैं , ऐसे ज्ञान रूप परम गुरु श्री अतुल आनंद स्वामी जी महाराज को मैं प्रणाम करता हूं।
हर्षामर्षविनिर्मुक्तं धृतकाषायवाससम् ।
प्रणमाम्यतुलानन्दं प्रातःपूज्यं तपोधनम् ॥ 5
प्रसन्नता और क्रोध इन दोनों से मुक्त , भगवा वस्त्र धारण करने वाले , सुबह-सुबह स्मरणीय , तपस्या रूपी धन वाले, स्वामी अतुलानन्द जी महाराज को मैं प्रणाम करता हूं।
श्रुतिसिद्धान्तवेत्तारं निजानन्दात्मकं शुभम्।
प्रणमाम्यतुलानन्दं शिवरूपं परं गुरुम् ॥ 6
वेद-शास्त्रों के सारे सिद्धान्तों के जानकार , शुभतासम्पन्न, आत्मा रूपी आनंद में रमण करने वाले , परम शिव स्वरूप , स्वामी अतुलानंद जी महाराज को मैं प्रणाम करता हूं।
निर्द्वन्दं वै सदानन्दं मुक्तप्रपञ्चपञ्जरम्।
प्रणमाम्यतुलानन्दं विष्णुरुपं महागुरुम् ॥ 7
जो निर्द्वन्द्व हैं, और सदा आनंदित रहते हैं,(या सत्स्वरूप है आनन्द जिनका) , सांसारिक प्रपंच रूपी पिंजरे से मुक्त हैं, ऐसे साक्षात् विष्णु स्वरूप, स्वामी अतुलानन्द जी महाराज को मैं प्रणाम करता हूं।
आत्मानात्मविवेत्तारं ज्ञानविज्ञानसंयुतम्।
प्रणमाम्यतुलानन्दं ब्रह्मरुपं परं गुरुम् ॥ 8
आत्म और अनात्म को विशिष्ट रूप से जानने वाले, ज्ञान और विज्ञान संयुक्त , परम् ब्रह्म स्वरूप अपने गुरु , स्वामी अतुलानन्द जी महाराज को मैं प्रणाम करता हूं।
अष्टश्लोकी स्तुतिश्चैषा पुण्यानन्दविवर्धिनी ।
रचिता वै ह्यनन्तेन गुरुदेवप्रसादतः ॥
यह आठ श्लोकों की गुरुदेव की स्तुति , पुण्य और आनंद को बढ़ाने वाली है , यह स्वामी अनन्तबोध चैतन्य जी ने अपने गुरुदेव की कृपा से ही प्रणीत की है।
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