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Swami Krishnananda Ji Maharaj

सर्वशास्त्रार्थनिष्णातं निगमागमबोधकम् ।
श्रीकृष्णाख्यं यतिश्रेष्ठं प्रणमामि पुनः पुनः ॥1

सभी शास्त्रों का अर्थ करने में निष्णात, निगम और आगम का बोध प्रदान करने वाले , यतिश्रेष्ठ, श्रीकृष्णानंद जी महाराज को मैं बार-बार प्रणाम करता हूं।

कृष्णानन्दं जगद्वन्द्यं कारुण्यामृतसागरम् ।
स्वात्मानन्दनिमग्नञ्च शिवसायुज्यसाधकम् ॥2

कृष्ण-आनंदी, संपूर्ण जगत् के द्वारा वंदित, करुणा रूपी अमृत के सागर , अपनी आत्मा के आनंद में डूबे हुए, शिव सायुज्य की साधना करने वाले , गुरुदेव को प्रणाम।

जीवितं यस्य लोकायाऽलोकायैव च जीवनम् ।
महादेवसमं मान्यममान्येभ्योऽपि मानदम् ॥ 3

जिनका जीवन,संसार का कल्याण करने में लगा हुआ भी , अलौकिक गतिविधियों से पूर्ण है, ऐसे महादेव के समान सम्माननीय, अमान्य (जो गरीबी आदि के कारण समाज में अमान्य हैं) लोगों को भी सम्मान देने वाले गुरुदेव को प्रणाम।

हार्दं लोकहितार्थाय मनोहारि च यद्वचः ।
राकेन्दुरिव दिव्याय भव्यायापि नमो नमः ॥ 4

जिनकी वाणी , हार्दिक होती हुई भी संसार के लिए कल्याणकारी एवं मनोहर होती है, ऐसे रात्रि कालीन चंद्रमा की तरह दिव्य और भव्य गुरुदेव को बारंबार प्रणाम।

काषायवस्त्रभूषाय मालारुद्राक्षधारिणे ।
श्रीकृष्णानन्दसंज्ञाय गुरूणां गुरवे नमः। 5

कषाय वस्त्र से विभूषित, माला और रुद्राक्ष धारण करने वाले, जो गुरुओं के भी गुरु हैं , ऐसे श्री कृष्णानंद स्वामी जी के लिए नमस्कार।

यतिमण्डलमार्तण्डमानन्दाम्बुधिसन्निभम्
नमामि शिरसा देवं कृष्णानन्दं यतिं वरम् ॥6

सन्यासियों के मंडल में मार्तंड (सूर्य) की तरह देदीप्यमान,आनन्द के समुद्र के जैसी आभा वाले,श्रेष्ठ यति, कृष्णानंद स्वामी जी को मैं सिर झुका कर नमस्कार करता हूं।

अज्ञानतिमिरध्वंसं विप्रकुलसमुद्भवम् ।
नमामि मनसा देवं कृष्णानन्दं यतिं वरम् ॥7

अज्ञान रूपी अंधकार नष्ट करने वाले , ब्राह्मण के कुल में उत्पन्न, वरणीय, देवस्वरूप, कृष्णानंद यति जी महाराज को मैं अपने मन से प्रणाम करता हूं।

नमः परमहंसाय सुधीभिर्वन्दिताय च ।
श्रीकृष्णानन्दसंज्ञाय गुरूणां गुरवे नमः ॥8

विद्वानों द्वारा वन्दित, परमहंस, गुरुओं के गुरु , श्रीकृष्णानंद जी महाराज को नमस्कार है।

अष्टश्लोकी स्तुतिश्चैषा पुण्यानन्दविवर्धिनी ।
रचिता वै ह्यनन्तेन गुरुदेवप्रसादतः।।

यह आठ श्लोकों की स्तुति , पुण्य और आनंद को बढ़ाने वाली है, यह अनंतबोध चैतन्य ने अपने गुरुदेव के प्रसाद से ही लिखी है।

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Swami Atulananda ji Maharaj

योगारूढं परं शान्तं सौम्यरूपं गुणाकरम् ।
प्रणमाम्यतुलानन्दं चैतन्याहितचेतसम् ॥ 1

योगपथ पर आरूढ़, परम् शान्त, सौम्य स्वरूप वाले, गुणों के निधान, अपने चित्त को उस चैतन्य स्वरूप परमात्मा में रखने वाले, श्री अतुलानन्द जी महाराज को मैं प्रणाम करता हूं।

सर्वशास्त्रार्थनिष्णातं विप्रकुलसमुद्भवम् ।
प्रणमाम्यतुलानन्दं तपोरूपं परं गुरुम् ॥2

सभी शास्त्रों के अर्थ करने में निष्णात , ब्राह्मण कुल में जन्म लेने वाले , तपस्वी स्वरूप, सच्चे अर्थों में गुरु, स्वामी अतुलानन्द जी महाराज को मैं प्रणाम करता हूं।

गीतागोविन्दगङ्गानां गवां सम्पूजने रतम्।
प्रणमाम्यतुलानन्दं लोकवन्द्यं महागुरुम् ॥3

गीता, भगवान् कृष्ण, गंगा और गायों की पूजा करने में लगे रहने वाले , इस संसार के सभी मनुष्यों द्वारा वन्दनीय, महान् गुरु स्वरूप, स्वामी अतुल आनंद जी महाराज को मैं प्रणाम करता हूं।

अज्ञानध्वान्तविध्वंसप्रचण्डमतिभास्करम् ।
प्रणमाम्यतुलानन्दं ज्ञानरूपं परं गुरुम् ॥ 4
अज्ञान रूपी अंधेरे का नाश करने में जो प्रचंड बुद्धि को धारण करने वाले सूर्य के समान हैं , ऐसे ज्ञान रूप परम गुरु श्री अतुल आनंद स्वामी जी महाराज को मैं प्रणाम करता हूं।

हर्षामर्षविनिर्मुक्तं धृतकाषायवाससम् ।
प्रणमाम्यतुलानन्दं प्रातःपूज्यं तपोधनम् ॥ 5

प्रसन्नता और क्रोध इन दोनों से मुक्त , भगवा वस्त्र धारण करने वाले , सुबह-सुबह स्मरणीय , तपस्या रूपी धन वाले, स्वामी अतुलानन्द जी महाराज को मैं प्रणाम करता हूं।

श्रुतिसिद्धान्तवेत्तारं निजानन्दात्मकं शुभम्।
प्रणमाम्यतुलानन्दं शिवरूपं परं गुरुम् ॥ 6

वेद-शास्त्रों के सारे सिद्धान्तों के जानकार , शुभतासम्पन्न, आत्मा रूपी आनंद में रमण करने वाले , परम शिव स्वरूप , स्वामी अतुलानंद जी महाराज को मैं प्रणाम करता हूं।

निर्द्वन्दं वै सदानन्दं मुक्तप्रपञ्चपञ्जरम्।
प्रणमाम्यतुलानन्दं विष्णुरुपं महागुरुम् ॥ 7

जो निर्द्वन्द्व हैं, और सदा आनंदित रहते हैं,(या सत्स्वरूप है आनन्द जिनका) , सांसारिक प्रपंच रूपी पिंजरे से मुक्त हैं, ऐसे साक्षात् विष्णु स्वरूप, स्वामी अतुलानन्द जी महाराज को मैं प्रणाम करता हूं।

आत्मानात्मविवेत्तारं ज्ञानविज्ञानसंयुतम्।
प्रणमाम्यतुलानन्दं ब्रह्मरुपं परं गुरुम् ॥ 8

आत्म और अनात्म को विशिष्ट रूप से जानने वाले, ज्ञान और विज्ञान संयुक्त , परम् ब्रह्म स्वरूप अपने गुरु , स्वामी अतुलानन्द जी महाराज को मैं प्रणाम करता हूं।

अष्टश्लोकी स्तुतिश्चैषा पुण्यानन्दविवर्धिनी ।
रचिता वै ह्यनन्तेन गुरुदेवप्रसादतः ॥

यह आठ श्लोकों की गुरुदेव की स्तुति , पुण्य और आनंद को बढ़ाने वाली है , यह स्वामी अनन्तबोध चैतन्य जी ने अपने गुरुदेव की कृपा से ही प्रणीत की है।

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Our Activities for welfare.

Our Activities for welfare.
The Activities of Pujya Maharaj Nirvana Pithadhishwar Acharya Mahamandleshwar Shri 108 Swami Vishwadevanada ji embraced spiritual, cultural, educational, scientific and social fields. One of the significant achievements in these fields is the unique work he has done for the upliftment of poor Brahmin students & Sanyasis (Monks) in all over India. These institutions were managed by our Pujya Maharaj Shri. Some of them I am describing here below.
Our Educational Institutes-
The first College for Sanyasis was Sanyansi College, Varanasi (Uttar Pradesh). It was established in 1907. More than 1000 Sanyasis have been passed out from this college. The founder of this college was Brahmlin Nirvana Pithadhishwar Acharya Mahamandleshwar Shri 108 Swami Jayendra Puri ji Maharaj. More than 300 books have been published from here since 1907.
Shri Kashi Vishvanath Sanskrit Mahavidyalya, Ahmedabad, Gujarat. It is located in Elis Bridge on the bank of river Sabarmati. It was also established by Brahmlin Nirvana Pithadhishwar Acharya Mahamandleshwar Shri 108 Swami Shri Jayendra Puri ji in 1933. So many brilliant students passed out from this college.
Shri Kashi Vishvanath Sanskrit Mahavidyalya, Uttrakashi (Uttrakhanda)
Shri Jayendra Puri Art & Science College, Bharuch (Gujarat). It was established by Brahmlin Nirvana Pithadhishwar Acharya Mahamandleshwar Shri 108 Swami Shri Krishananda ji Maharaj.
Shri Jayendra Puri law college Bharuch (Gujarat)
Shri Krishananda Sanskrit Mahavidyalya, Kolkata (West Bengal)
Our Charitable Hospitals –
Mahamandelshwar Shri Krishananda Ji Ayurvedic & Homeopathic Charitable Hospital, Bara Bazar, Kolkata. Here we provide free eye checkup for poor also.
Mahamandelshwar Shri Krishananda Ji Ayurvedic Hospital Elis Bridge, Ahmedabad. We also provide free medical help for needy person.
Our Anna Chetra (Where provided food for poor & disable –person)
By the order of Nirvana Pithadhishwar Acharya Mahamandleshwar Shri 108 Swami Shri Vishwadevanada ji Maharaj, we provide food for everyone who wants to eat (not only poor but also every person) free of cost in every Kumbh Mela.
Our Goshalas (Cow Shelters):-
There are a big Goshala in our Sanyas Ashram, Elis Bridge (Ahmedabad). Near about 70 cows are in it. The milk of our cows newer be sold; it is only for Puja. Pujya Maharaj Shri always says that we should have do service of mother cow. The cow is not animal it’s our mother in our Indian mythology.
We have a Goshala in Shri Yantra Mandir, Kankhal (Haridwar) also.

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Brahmlin Swami Shri Vishwadevananda ji

ब्रह्मलीन श्री निर्वाण पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी श्री विश्वदेवानंद जी महाराज
जन्म स्थान :
स्वामी श्री का जन्म सन् २६ जनवरी १९४६ ईस्वी में कानपुर, उत्तर प्रदेश के एक नौगवां, (हरचंदखेड़ा) में सनातनधर्मी कान्यकुब्ज ब्राह्मण ‘ विश्वनाथ शुक्ला जी के परिवार में हुआ | बचपन में उनका नाम ‘कैलाशनाथ शुक्ला ‘ रखा गया | |
वैराग्य : स्वामी श्री ने सत्य की खोज में १४ वर्ष की अल्पायु में गृहत्याग कर दिया | वस्तुतः उसके बाद वह कभी घर लौट कर नहीं गये और न ही किसी प्रकार का घर से सम्बन्ध रक्खा | उसी वर्ष नैमिषारणय के पास दरिया पुर गाव में स्वामी सदानंद परमहंस जी महाराज जी से साधना सत्संग की इच्छा से मिलने गये | वहां उन्होंने अनेक प्रकार कि साधनाए सीखी और उनमे पारंगत हुए |
अध्ययन : स्वामी जी ने निर्वाण पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी श्री कृष्णानन्द जी महाराज श्री जी के सानिध्य में संन्यास आश्रम अहमदाबाद में व्याकरण शास्त्र,दर्शन शास्त्र, भागवत, न्यायशास्त्र, वेदांत आदि का अध्ययन किया |फिर देहली विश्वविद्यालय से आंग्ल भाषा में स्नातकोत्तर की उपाधि ग्रहण की |
तपो जीवन : २० वर्ष की आयु से हिमालय गमन प्रारंभ कर अखंड साधना, आत्मदर्शन,धर्म सेवा का संकल्प लिया | पंजाब में एक बार भिक्षाठन करते हुए स्वामी जी को किसी विरक्त महात्मा ने विद्या अर्जन करने कि प्रेरणा की | एक ढाई गज कपरा एवं दो लंगोटी मात्र रखकर भयंकर शीतोष्ण वर्षा का सहन करना इनका १५ वर्ष की आयु में ही स्वभाव बन गया था | त्रिकाल स्नान, ध्यान, भजन, पूजन, तो चलता ही था | विद्याधययन की गति इतनी तीव्र थी की संपूर्ण वर्ष का पाठ्यक्रम घंटों और दिनों में हृदयंगमकर लेते |
संन्यास ग्रहण : स्वामी जी सन १९६२ में परम तपस्वी निर्वाण पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी श्री अतुलानंद जी महाराज श्री से बिधिवत संन्यास ग्रहण कर नर से नारायण के रूप हो हुए | तभी से पूर्ण रूप से सन्यासी बन कर “परमहंस परिब्राजकाचार्य १००८ श्री स्वामी विश्वदेवानंद जी महाराज” कहलाए |
देश और विदेश यात्राएँ : सम्पूर्ण देश में पैदल यात्राएँ करते हुए धर्म प्रचार एवं विश्व कल्याण की भावना से ओतप्रोत पूज्य महाराज जी प्राणी मात्र की सुख शांति के लिए प्रयत्नशील रहने लगे | उनकी दृष्टि में समस्त जगत और उसके प्राणी सर्वेश्वर भगवान के अंश हैं या रूप हैं | यदि मनुष्य स्वयं शांत और सुखी रहना चाहता है तोऔरों को भी शांत और सुखी बनाने का प्रयत्न आवश्यक है उन्होंने जगह जगह जाकर प्रवचन देने आरम्भ किये और जन जन में धर्म और अध्यात्म का प्रकाश किया उन्होंने सारे विश्व को ही एक परिवार की भांति समझा और लोगो में वसुधैव कुटुम्बकम की भावना का बीज वपन किया और कहा कि इससे सद्भावना, संघटन,सामंजस्य बढेगा और फिर राष्ट्रीय, अन्तराष्ट्रीय तथा समस्त विश्व का कल्याण होगा |
निर्वाणपीठाधीश्वर के रूप में : सन १९८५ में पूज्य निर्वाण पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी श्री अतुलानंद जी महाराज श्री के ब्रह्मलीन होने का पश्चाद् स्वामी जी को समस्त साधू समाज और श्री पंचायती अखाडा महानिर्वाणी के श्री पञ्च ने गोविन्द मठ कि आचार्य गादी पर बिठाया|
श्री यन्त्र मंदिर का निर्माण : १९८५ में महानिर्वाणी अखाड़े के आचार्य बनने के बाद १९९१ में हरिद्वार के कनखल क्षेत्र में महाराज श्री ने विश्व कल्याण की भावना से विश्व कल्याण साधना यतन की स्थापना की उसके बाद सन २००४ में इसी आश्रम में भगवती त्रिपुर सुन्दरी के अभूतपूर्व मंदिर को बनाने का संकल्प लिया और सन २०१० के हरिद्वार महाकुम्भ में महाराज श्री का संकल्प साकार हुआ. सम्पूर्ण रूप से श्री यंत्राकार यह लाल पत्थर से निर्मित मंदिर अपने आप में महाराज श्री की कीर्ति पताका को स्वर्णा अक्षरों में अंकित करने के लिए पर्याप्त है.
शिष्य एवं भक्त गण : महाराज श्री के हजारो नागा संन्यासी शिष्य हुए उनके तीन ब्रह्मचारी शिष्य हुए उनमे से प्रधान शिष्य ब्रह्मचारी अनंतबोध चैतन्य जो देश विदेश में उनके संकल्पों को पूरा करने में तत्पर है और अध्ययन और अध्यापन में लगे रहते है महाराज श्री ने उनको २०१० में गोविन्द मठ की ट्रस्ट में ट्रस्टी के रूप में भी रक्खा|दुसरे शिष्य शिवात्म चैतन्य जो पठानकोट के आश्रम को देखते है तथा अंतिम तथा तीसरे ब्रह्मचारी शिष्य निष्कल चैतन्य कढ़ी कलोल के आश्रम को देखते है | महाराज जी के लाखो भक्त गण हुए जिनमे से कोलकता के श्री लक्ष्मी कान्त तिवारी जी अग्रगण्य है | उनके शिष्य अहमदाबाद , दिल्ही बरोडा कोलकाता आदि भारत के सभी शहरों में और विदेश में अमेरिका , इंग्लेंड , ऑस्ट्रेलिया ,बैंकाक , कनाडा यूरोप तथा अफ्रीका में लाखों शिष्य महाराज श्री को अपना प्राण धन मानते है.
ब्रह्मलीन : ७ मई २०१३ को हरिद्वार के लिए आते हुए एक भीषण दुर्घटना में महाराज श्री के प्राण व्यष्ठी से समष्टि में विलीन हो गए | उनके नश्वर पार्थिव शरीर को श्री यन्त्र मंदिर के प्रांगन में रुद्राक्ष के वृक्ष के नीचे श्री भगवती त्रिपुर सुन्दरी की पावन गोद में भू समाधी दी गई|

समाज सेवा में रत, सर्वजन सुखाय सर्वजन हिताय, विश्व के कल्याण का उद्घोष देने वाले भारतीय वैदिक सनातन भावना के अजस्त्र, अवोध, अविरल गति से प्रचार में समस्त जीवन अर्पण करने वाले देव – तुल्य सन्यासी, शास्त्री महारथी, ओजस्वी वक्ता, प्रकाण्ड पंडित, युगदृष्टा श्री निर्वाण पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी श्री विश्वदेवानंद जी महाराज को कोटि – कोटि प्रणाम |

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Timing of Sringar-Pooja

Aarti Timings
Daily Routine of Sringar – Pooja of (Maa Tripura Sundri)
1. Mangal Aarti: (in Morning) 6.00 AM to 7.00 AM
2. Raj Shree Aarti:(in Noon) 11.00 AM to 11.30 AM
3. Mukhya Aarti: (in Evening) 7.15 PM to 8.30 PM
4. Shayan 🙁 in Night) – 10.00 PM

We provide all Spiritual related facilities including Pooja, Hawan, Aarti Samagry arrangements. We also provide free counseling to all devotees for their satisfaction. Proper Guidance is our primary motive. We honor all devotees who visit our temple.
If you are unable to reach directly to Shree Yantra Temple and want to make a pooja or any religious activities like, to sponsor free Langars or to sponsor a pooja or yagya for your wishes. In this case we also provide all arrangements on your behalf. We will send PRASAD of your wishing poojas or yagya through available COURIER services at your doorstep.
Sringra-Poojan arrangements for desired devotees, Accommodation availability, Travel arrangements for and make arrangements of guides to know about Shree Yantra Temple. You can Contact us. You can deposit your amounts for your sacred activities at Shree Yantra Temple. Please let us know about your sacred wishes on direct phone numbers or through email, at our given address.
Shri Sanyas Ashrama
Ellis Bridge, Ashram Road, Ahmedabad, Gujarat 380006. India
Shree Yantra Mandir
Vishvakalyan Sadhanayatana, Shree Yantra Mandir Marg, Kankhal , Haridwar (Himalaya) India
Our Phone No +91-01334246918, 9810223465
Our Email address – shriyantramandir@gmail.com

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