स्वामी श्री विश्वदेवानन्द जी महाराज
सर्वतन्त्रस्वतन्त्राय धर्मशास्त्रप्रचारिणे
निर्वाणपीठराजाय वेदान्तगुरवे नमः ।। 1
जो सभी प्रकार के तन्त्रों (नियमादि विधि-निषेधों) से स्वतन्त्र हैं, धर्म और शास्त्र का प्रचार करने वाले,निर्वाण-पीठाधीश्वर, वेदान्त दर्शन का ज्ञान देने वाले गुरु के लिए नमस्कार है।
कर्मनिष्ठं प्रसन्नं तं निजानन्दस्वरुपिणम्
अज्ञानतिमिरध्वंसं प्रणमामि मुहुर्मुहुः॥ 2
उन कर्मनिष्ठ, सदा प्रसन्न रहने वाले, आत्मानन्दी स्वरूप वाले, अज्ञान रूपी अन्धकार को नष्ट करने वाले, श्रीगुरुदेव महाराज को मैं बार-बार प्रणाम करता हूं।
ज्ञाननिष्ठं धर्मनिष्ठं द्वन्द्वातीतं यतेन्द्रियम् ।
प्रणमामि गुरुं शैवं ह्यज्ञताध्वान्तनाशकम्॥3
ज्ञान और धर्म में निष्ठा धारण करने वाले , सभी द्वन्द्वों से परे, इन्द्रियों का संयम रखने वाले, अज्ञता रूपी तिमिर(अन्धकार) को नष्ट कर देने वाले,शैव (कल्याणमय)गुरुदेव भगवान् को मैं बारंबार प्रणाम करता हूं।
शरण्यं सर्वभक्तानां ब्रह्मानन्दस्वरूपकम् ।
प्रणमामि गुरुं दिव्यं मूढतातिमिरापहम्॥4
सभी भक्तों को शरण देने वाले, ब्रह्मानंद-स्वरूप, मूढ़ता रूपी अंधकार को ध्वस्त कर देने वाले, दिव्य गुरुदेव को मैं प्रणाम करता हूं।
श्रेयस्कामं महाभागं मानातीतं यतीश्वरम् ।
वन्देऽहं श्रीगुरुं देवं मोहशोकविनाशकम्॥ 5
(सभी का) श्रेय (कल्याण) चाहने वाले, महत् पद को भजने वाले, मान-अपमान से परे, महात्माओं में श्रेष्ठ, मोह,शोक आदि का विनाश करने वाले, देवस्वरूप गुरु जी को बारंबार प्रणाम है।
जपध्याने रतं नित्यं भयक्रोधादिवर्जितम् ।
मायाजालविनिर्मुक्तं प्रणमामि मुहुर्मुहु:॥ 6
जप और ध्यान में लगे रहने वाले, भय,क्रोध आदि से वर्जित,माया के जाल से मुक्त, गुरुदेव को मैं प्रणाम करता हूं।
लोभमोहपरित्यक्तमाशापाशविवर्जितम् ।
अज्ञानध्वंसने दक्षं प्रणमामि महागुरुम्॥ 7
लोभ व मोह को त्याग दिया है जिन्होंने, ऐसे, आशा के पाश (बन्धन) से मुक्त, अज्ञान नष्ट करने में अत्यन्त दक्ष, महागुरु जी को मैं प्रणाम करता हूं।
विश्वदेवं गुरुं वर्यं साक्षाच्छङ्कररूपिणम् ।
अज्ञाननाशकं चैवं प्रणमामि मुहुर्मुहुः॥ 8
विश्वदेव स्वरूप, वरण करने योग्य, साक्षात् शङ्कर स्वरूप,अज्ञान के नाशक, गुरु जी को मैं बारंबार प्रणाम करता हूं।
गुरुस्तोत्रमिदं पुण्यं ज्ञानविज्ञानदायकम् ।
मया विरच्यते ह्येतदनन्तब्रह्मचारिणा ॥
यह गुरुदेव महाराज का पुण्य स्तोत्र , ज्ञान और विज्ञान को देने वाला है यह मेरे (अनन्तबोध) के द्वारा विरचित है।
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