Swami Atulananda ji Maharaj

योगारूढं परं शान्तं सौम्यरूपं गुणाकरम् ।
प्रणमाम्यतुलानन्दं चैतन्याहितचेतसम् ॥ 1

योगपथ पर आरूढ़, परम् शान्त, सौम्य स्वरूप वाले, गुणों के निधान, अपने चित्त को उस चैतन्य स्वरूप परमात्मा में रखने वाले, श्री अतुलानन्द जी महाराज को मैं प्रणाम करता हूं।

सर्वशास्त्रार्थनिष्णातं विप्रकुलसमुद्भवम् ।
प्रणमाम्यतुलानन्दं तपोरूपं परं गुरुम् ॥2

सभी शास्त्रों के अर्थ करने में निष्णात , ब्राह्मण कुल में जन्म लेने वाले , तपस्वी स्वरूप, सच्चे अर्थों में गुरु, स्वामी अतुलानन्द जी महाराज को मैं प्रणाम करता हूं।

गीतागोविन्दगङ्गानां गवां सम्पूजने रतम्।
प्रणमाम्यतुलानन्दं लोकवन्द्यं महागुरुम् ॥3

गीता, भगवान् कृष्ण, गंगा और गायों की पूजा करने में लगे रहने वाले , इस संसार के सभी मनुष्यों द्वारा वन्दनीय, महान् गुरु स्वरूप, स्वामी अतुल आनंद जी महाराज को मैं प्रणाम करता हूं।

अज्ञानध्वान्तविध्वंसप्रचण्डमतिभास्करम् ।
प्रणमाम्यतुलानन्दं ज्ञानरूपं परं गुरुम् ॥ 4
अज्ञान रूपी अंधेरे का नाश करने में जो प्रचंड बुद्धि को धारण करने वाले सूर्य के समान हैं , ऐसे ज्ञान रूप परम गुरु श्री अतुल आनंद स्वामी जी महाराज को मैं प्रणाम करता हूं।

हर्षामर्षविनिर्मुक्तं धृतकाषायवाससम् ।
प्रणमाम्यतुलानन्दं प्रातःपूज्यं तपोधनम् ॥ 5

प्रसन्नता और क्रोध इन दोनों से मुक्त , भगवा वस्त्र धारण करने वाले , सुबह-सुबह स्मरणीय , तपस्या रूपी धन वाले, स्वामी अतुलानन्द जी महाराज को मैं प्रणाम करता हूं।

श्रुतिसिद्धान्तवेत्तारं निजानन्दात्मकं शुभम्।
प्रणमाम्यतुलानन्दं शिवरूपं परं गुरुम् ॥ 6

वेद-शास्त्रों के सारे सिद्धान्तों के जानकार , शुभतासम्पन्न, आत्मा रूपी आनंद में रमण करने वाले , परम शिव स्वरूप , स्वामी अतुलानंद जी महाराज को मैं प्रणाम करता हूं।

निर्द्वन्दं वै सदानन्दं मुक्तप्रपञ्चपञ्जरम्।
प्रणमाम्यतुलानन्दं विष्णुरुपं महागुरुम् ॥ 7

जो निर्द्वन्द्व हैं, और सदा आनंदित रहते हैं,(या सत्स्वरूप है आनन्द जिनका) , सांसारिक प्रपंच रूपी पिंजरे से मुक्त हैं, ऐसे साक्षात् विष्णु स्वरूप, स्वामी अतुलानन्द जी महाराज को मैं प्रणाम करता हूं।

आत्मानात्मविवेत्तारं ज्ञानविज्ञानसंयुतम्।
प्रणमाम्यतुलानन्दं ब्रह्मरुपं परं गुरुम् ॥ 8

आत्म और अनात्म को विशिष्ट रूप से जानने वाले, ज्ञान और विज्ञान संयुक्त , परम् ब्रह्म स्वरूप अपने गुरु , स्वामी अतुलानन्द जी महाराज को मैं प्रणाम करता हूं।

अष्टश्लोकी स्तुतिश्चैषा पुण्यानन्दविवर्धिनी ।
रचिता वै ह्यनन्तेन गुरुदेवप्रसादतः ॥

यह आठ श्लोकों की गुरुदेव की स्तुति , पुण्य और आनंद को बढ़ाने वाली है , यह स्वामी अनन्तबोध चैतन्य जी ने अपने गुरुदेव की कृपा से ही प्रणीत की है।

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